Hindi Grammar Alankar : Hello Friends, Aaj ki post me hum Alankar (अलंकार ) kya hai Alankar in hindi with examples, Alankar definition in hindi, Alankar ke Bhed or Alankar ke udaharan in hindi ke bare me puri details se janege. Alankar in hindi grammer me bhut important hai yeh hamare dwara bole jane wale sabdo ko alag hi roop de deta hai.
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अलंकार इन हिंदी
Yaha Hum Yamak, Anupars, Upma, Utpreksha, Manvikaran or Shlesh Alankar ke bare me inke udaharan sahit padege Class 8th 9th, 10th ke students ke liye hindi grammer me alankar ka yeh chapter bhut important hai islye hmne aapko yaha puri hindi me puri details se samjane ki kosis ki hai to dosto chaliye suru karte hai alankar in hindi grammar, Alankar ki Paribhasha, Bhed or Udaharan.
अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण- Alankar In Hindi
अलंकार शब्द ‘अलम्’ एवं ‘कार के योग से बना हैं जिसका अर्थ है आभूषण या विभूषित करने वाला।
इसके दो भेद है।
1. शब्दालंकार :- जहाँ कथन में विशिष्ट शब्द – प्रयोग के कारण चमत्कार अथवा सौन्दर्य आ जाता है वहॉ शब्दालंकार होता है। जैसे – अनुप्रास, यमक, श्लेष
2. अर्थालंकार :- जहाँ कथन विशेष में सौन्दर्य अथवा चमत्कार विशिष्ट शब्द प्रयोग पर आश्रित न होकर, अर्थ की । विशिष्टता के कारण आया हो वहाँ अर्थालंकार होता है। जैसे – उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, विराधाभास।
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1: अनुप्रास ( Anuprash Alankar ) :-
जहाँ वर्गों की पुनरावृति से चमत्कार उत्पन्न होता हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है जैसे –
कल कानन कुण्ड़ल मोर पंखा • छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की • कंकन किकिन नूपुर धुनि सुनि मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो। चारू चंद्र की चंचल किरणे खेल रहीं थी जल थल में |
2: यमक ( Yamak Alankar ) :-
जब एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता
• कई कवि बेनी, बेनी ब्याल की चुराई लानी (बेनी–कवि, बेनी चोटी)
रति–रति सोभा सब रति के सरीर की (रति–रति – जरा सी, रति – कामदेव की पत्नी) काली घटा का घमंड़ घटा (घटा- बादलों की घटा, घटा – कम होना) ।
भजन कयौ ताते भज्यौ, भज्यौ न एक बार (भज्यौ – भजन किया, भज्यौ– भाग किया)
• कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय (कनक- सोना, कनक- धतुरा)
माला फेरत जुग गया, फिरा न मनका फेर। कर का मनका ड्रारि दे, मन का मनका फेर।। (मनका – माला का दाना, मन का- हृदय का)
• जे तीन बेर खाती थी ते तीन बेर खाती हैं (तीन बेर – तीन बेर के दाने, तीन बेर – तीन बार)
• तू मोहन के उरबसी इवै उरबसी समान | पच्छी पर छीने एसे परे पर छीने बीर, तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
• जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे है।
• पास ही रे। हीरे की खान उसे खोजता कहाँ नादान ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहनवारी ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती हैं।
3: श्लेष ( Shlesh Alankar ) :-
श्लेष का अर्थ है चिपकना । जहाँ एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ दे वहाँ श्लेष अंलकार होता है।
• सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि, व्यभिचारी चोर। (सुबरन – अच्छे शब्द, सुबरन – स्व॑ण)
• मधुबन की छाती को देखो, सूखी कितनी इसकी कलियाँ (कलियाँ- खिलने से पूर्व फूल की दशा, कलियाँ-यौवन से पहले की अवस्था)
• जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।।
बारे उजियारो करै, बढे अँधेरा होय।। (बढ़े – बड़ा होने पर, बढ़े- बुझने पर) को धटि ये वृषभनुजा वे इलधर के वीर । रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुस, चून (पानी-चमक, पानी- प्रतिष्ठा, पानी – जल) नर की अरक्त नलनीर की गति एकै कर जोय जेतो नीचों इवें चले ततो ऊँचो हो।। रावन सिर सरोज बनचारी। चलि रघुवीर सिलीमुख धारी (सिलीमुख – बाण, भ्रमर)
1. उपमा ( Upma Alankar ):-
जहाँ एक वस्तु की दूसरी वस्तु के साथ किसी गुणधर्म अथवा स्वरूप के कारण समानता दिखाई जाती है वहाँ | उपमा अलंकार होता है। उपमा के चार अंग होते है।
a) उपमेय :- जिस वस्तु का वर्णन या तुलना की जाए उसे उपमेय कहते हैं जैसे “नेत्र कमल के समान सुन्दर है। यहां नेत्र की समानता कमल से की गई हैं। अतः नेत्र उपमेय हैं।
b) उपमान :- जिस पदार्थ या वस्तु से उपमा दी जाती हैं।, उसे उपमान कहते हैं। इसी को अप्रस्तुत भी कहा जाता हैं।
जैसे- उपर्युक्त उदाहरण में नेत्र की उपमा कमल से दी गई है। अतः कमल उपमान हैं।
c) साधारण धर्म :- उपमेय और उपमान की जिस गुण में तुलना की जाये, उस गुण को साधारण धर्म कहते हैं। ऊपर दिए गये वाक्य में सुन्दर साधारण धर्म है।
d) वाचक :- उपमेय और उपमान की समता प्रकट करने वाले शब्द वाचक शब्द कहलाते हैं जैसे – सा, सो, से, सी, सरिस, समान, सदृश, इव, ज्यों, जैसे, जिमि, इमि आदि वाचक शब्द होते है। उपर के उदाहरण में समान वाचक शब्द हैं।
• पीपर पात सरिस मन डोला
• आनन सुन्दर चन्द्र-सा।।
इरि–पद कोमल कमल से उसी तपस्वी से लम्बे थे देवदारू दो चार खड़े। असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी। यह देखिए, अरविंद-से शिशुवृंद कैसे सो रहे। नदिया जिनकी यशधारा-सी बहती है। मुख बाल–रवि-सम लाल होकर ज्वाला—सा बोधित हुआ। नील गगन-सा शांत हृदय था हो रहो मखमल के झूले पड़े हाथी-सा टीला सिंधु-सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह
ii. रूपक ( Rupak Alankar ) :-
जहाँ गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद् आरोप कर दिया गया हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।
मुख़-चन्द्र तुम्हारा देख सखे। मन-सागर मेरा लहराता। मैया! मै तो चन्द्र-खिलौना लैहों। चरण-कमल बैन्द इरिराई। पायो जी मैने राम–रतन धन पायो।
एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास।
iii. उत्प्रेक्षा ( Utpreksha Alankar ):-
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना कर ली गई हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके
बोधक शब्द हैं मनो, मानो, मनु, मनुड, जानो, जनु, जन, ज्यों आदि। • मानो माई धनधन अंतर दामिनि।
चमचमात चंचल नयन, बिच पूँघट पट छीन। मनहु सुरसरिता विचल, जल उछ्रत जुग मीन।।
• सोइत ओढे पीत पट, स्याम सलोने गात।।
मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।
• उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।
कहती हुई यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए। हिम के कणों से पूर्ण मानों, हो गए पंकज नए।।
• मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा • ले चला मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण–झनक।
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