Viram chinh (Punctuation Mark) In Hindi – विराम चिह्न

Hello Friends, Aaj hum hindi grammer me Viram Chinh ke bare me janege Viram Chinh in hindi post me aapko iski paribhasha, Example, Chart or Types janne ko milege. Niche humne aapko Hindi bhasha me jitne Punctuation Mark ( विराम चिह्न ) hote hai sabhi ki detailed list provide ki hai.

viram chinh in hindi chart
Viram Chinh In hindi

Viram Chinh ko english me punctuation marks, Restig Point Kehte hai to dosto aapka jyada time na lete huye suru karte hai Viram Chinh In Hindi Meaning & Worksheets.

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Viram Chinh in hindi – विराम चिह्न

परिभाषा: लेखक के भाव और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्न का प्रयोग वाक्य अथवा वाक्यों में किया जाता है, उन्हें विरामचिन कहते हैं।

‘विराम’ का शाब्दिक अर्थ होता है— ठहराव। लेखनकार्य में इसी ‘ठहराव’ के लिए चिह्नों का प्रयोग होता है। लेखनकार्य के अन्तर्गत भाव अथवा विचारों में ठहराव के लिए विराम चिह्नों का प्रयोग होता है। इन विराम चिह्नों का प्रयोग न करने से भाव अथवा विचार की स्पष्टता में बाधा पड़ती है तथा वाक्य एक दूसरे से उलझ जाते हैं एवं साथ ही पाठक को भी माथापच्ची करनी पड़ती है। अतः यह कहा जा सकता है कि वाक्य के सुन्दर गठन और भावाभिव्यक्ति की स्पष्टता के लिए इन विरामचिह्न की आवश्यकता एवं उपयोगिता मानी जाती है । प्रत्येक विराम चिह्न लेखक की विशेष मनोदशा का एक-एक ठहराव है अथवा विराम का संकेत स्थान है।

विरामचिह्नों का प्रयोग पश्चिमी साहित्य अथवा अंग्रेजी के माध्यम से भारतीय भाषाओं में शुरू हुआ है। इस दृष्टि से हम पश्चिम के ऋणी हैं। 19वीं शती के पूर्वार्द्ध तक भारतीय भाषाओं में विरामचिन्हों का प्रयोग नहीं होता था। संस्कृत भाषा में केवल पूर्णविराम का प्रयोग हुआ है। कारण यह है कि इस भाषा का स्वरूप संश्लिष्ट अथवा सामासिक है एवं गठन अन्वय सापेक्ष। हिन्दी भाषा चूँकि विश्लेषणात्मक है। इसलिए इसमें विरामचिह्नों की आवश्यकता रहती है। यह यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमने अंग्रेजी से केवल विराम चिह्न लिये हैं। अंग्रेजी भाषा और व्याकरण को हमने ग्रहण नहीं किया है, क्योंकि हिन्दी की वाक्य रचना अंग्रेजी से भिन्न है।

हिन्दी में प्रयुक्त विरामचिह्न 

हिन्दी में मुख्य रूप से निम्नलिखित विरामचिह्नों का प्रयोग होता है.

(1) अर्द्धविराम (Semicolon) (-;) 
(2) पूर्णविराम (Full stop)- (.) 
(3) अल्पविराम (Comma)- (,) 
(4) योजकचिह्न (Hyphen)- (-) 
(5) प्रश्नवाचक चिह्न (Sign of Interrogation)— (?)
(6) विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Interjection) (!) 
(7) उद्धरण चिह्न (Inverted Comma) ( ”… ” ) 
(8) कोष्ठक चिह्न (Bracket) ( ( ) ) 
(9) विवरण चिह्न (Sign of following) (:-)

(1) अर्द्धविराम (Semicolon) (-;)

( क ) एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे का दूर का सम्बन्ध बतलाने के लिए अर्द्धविराम का प्रयोग होता है। जैसे यह कलम अधिक दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।

( ख ) प्रधान वाक्य से सम्बद्ध यदि अन्य सहायक वाक्यांशों का प्रयोग किया जाय तो अर्द्धविराम लगाकर सहायक वाक्यांश को अलग किया जा सकता है। जैसे-छोटे-छोटे लड़के कम गहरे सरोवर में घुस जाते हैं; पानी उछालते हैं; तरंगों से क्रीड़ा करते हैं।

(ग) सभी तरह की उपाधियों के लेखन में अर्द्धविराम का प्रयोग किया जा सकता है। जैसेएम० ए०; एल-एल० बी० । प्रायः अर्द्धविराम के प्रयोग में कभी-कभी उलझन की स्थिति भी आ जाती है । कहीं-कहीं तो लोग अल्पविराम के स्थान पर अर्द्धविराम का प्रयोग कर बैठते हैं तथा अर्द्धविराम के स्थान पर अल्पविराम का।

(2) पूर्णविराम

( क ) पूर्णविराम का अर्थ पूर्ण ठहराव । जहाँ विचार की गति एकदम रुक जाय, वहाँ पूर्णविराम का प्रयोग होता ह। वस्तुतः वाक्य के अन्त में पूर्ण विराम का प्रयोग होता है। जैसे—यह लाल घोड़ा है। वह सुन्दर लड़की है।

( ख ) कभी -कभी वाक्यांशों के अन्त में भी पूर्णविराम का प्रयोग होता है। जैसे किसी व्यक्ति या वस्तु के सजीव वर्णन में। जैसे-श्याम वर्ण। गोल चेहरा। लम्बा कद। बड़ी-बड़ी आँखें। चौड़ा माथा। सफेद पाजामा कुर्ता पहने हुए “:” ।

(3) अल्पविराम (Comma)- (,) 

अल्पविराम का अर्थ है थोड़े समय के लिए ठहरना। अपनी मनोदशा के अनुसार लेखक अपने विचारों में अल्प ठहराव ले आता है। ऐसे ठहराव के लिए ही अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है।

( क ) जब वाक्य में दो से अधिक समान पद, पदांश अथवा वाक्यों में संयोजक अव्यय ‘और’ की गुंजाइश हो तो उस स्थान पर अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है।
जैसे—युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव आ रहे हैं ।
वाक्यों में – मोहन सुबह आता है, झाडू लगाता है, पानी भरा है। और चला जाता है।

( ख ) जहाँ बार-चार शब्द आ रहे हैं और भावातिरेक में उन पर विशेष बल दिया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है ।
जैसे—नहीं, नहीं, मुझसे यह काम नहीं होगा।

(3) योजकचिह्न (Hyphen)- (-) 

हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक है। इस कारण इसमें योजक चिहून की जरूरत पड़ती है। वस्तुतः योजक चिन्ह वाक्य में प्रयुक्त शब्द अर्थ को स्पष्ट करते हैं। इससे किसी शब्द के उच्चारण अथवा बर्तनी में स्पष्टता आती है। कहीं-कहीं तो योजक चिह्नों का ठीक प्रयोग न करने से उच्चारण और अर्थ से सम्बन्धित अनेक गलतियाँ हो सकती हैं। जैसे—‘उपमाता’ के दो अर्थ हैं- उपमा देनेवाला, सौतेली माँ । लेकिन यदि दूसरे अर्थ में उक्त शब्द का प्रयोग करना है तो ‘उप’ और ‘माता’ के बीच योजक चिह्न लगाना (उप-माता) जरूरी होगा।

इसी प्रकार ‘कुशासन’ के भी दो अर्थ हैं- बुरा शासन और कुश से बना हुआ आसन । यदि पहले अर्थ में उक्त शब्द का प्रयोग करना है तो ‘कु’ के बाद योजक चिह्न (कु-शासन) लगाना जरूरी होगा ।

निम्नलिखित रूप में योजक चिह्नों का प्रयोग किया जा सकता है।

(1) दो विपरीतार्थक शब्दों के बीच योजक चिह्न लगाये जा सकते हैं । जैसे—रात-दिन, • पाप-पुण्य, माता-पिता, लेन-देन, आदान-प्रदान आदि ।

(2) जिन पदों के दोनों खण्ड प्रधान हों और जिनमें ‘और’ लुप्त हो वहाँ योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे—लोटा-डोरी, माता-पिता, लड़का-लड़की, भात- दाल आदि ।

(3) ‘एकार्थबोधक सहचर’ शब्द (अर्थात् ऐसे शब्दों में जिनके अर्थ समान होते हैं) के बीच योजक चिह्न लगाए जाते हैं । जैसे—समझ-बूझ, दीन-दुखी, सेठ-साहूकार, हँसी-खुशी, नपा-तुला, चाल-चलन, जी-ज्ञान ।

(4) यदि एक ही संख्या दो बार प्रयुक्त हो तो उनके बीच यौजक चिह्न लगाया जा सकता है।

जैसे—राम-राम, बच्चा-बच्चा, बूंद-बूंद, नगर-नगर, गली-गली आदि । 

(5) निश्चित संख्यावाचक विशेषण के जब दो पद एक साथ प्रयुक्त हों तो दोनों के बीच

योजक-चिह्न प्रयुक्त हो सकता है । जैसे—बहुत-सी घन, बहुत-सी बातें, एक से बढ़कर एक, कम-से-कम ।। 

(6) जब दो शब्दों के बीच सम्बन्धकारक के चिह्न – का, के, की- लुप्त हो तो दोनों के बीच

योजक चिह्न लगाया जा सकता है । जैसे—शब्द-सागर, रावण-वघ, प्रकाश – स्तम्भ, | राम-नाम, मानव-शरीर, कृष्ण लीला, मानव-जीवन इत्यादि । 

(7) लिखते समय यदि कोई शब्द पंक्ति के अन्त में पूरा न हो तो उक्त शब्द के आधे खण्ड के

बाद योजक चिह्न लगाया जा सकता है । जैसेउसका व्यवहार वस्तुतः आपत्ति जनक है ।

(5) प्रश्नवाचक चिह्न (Sign of Interrogation)— (?)

निम्न अवस्थाओं में प्रश्नवाचक चिहून का प्रयोग होता है

( क ) जहाँ प्रश्न पूछा या किया जाय, जैसे—तुम क्या कर रहे हो ? 

( ख ) व्यंग्यक्तियों के प्रयोग में, जैसे—यही आपका कर्तव्य है न ? 

( ग ) जहाँ स्थिति निश्चित न हो, जैसे—शायद आप लखनऊ के रहनेवाले हैं ?

(6) विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Interjection) (!) 

करुणा, भय, हर्ष, विषाद, आश्चर्य, घृणा आदि भावों को व्यक्त करने लिए निम्नलिखित स्थितियों से विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग होता है ।

( क ) अपने से छोटों के प्रति सद्भावना अथवा शुभकामना व्यक्त करने के लिए विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग किया जाता है । जैसे—तुम चिरंजीवी हो । भगवान् तुम्हारा भला करें । | 

( ख ) आस्लादसूचक शब्दों, पद एवं वाक्यों के अन्त में विस्मयादिबोधक चिहून का प्रयोग होता है । जैसे—वाह ! तुम धन्य हो ।

(ग) मन की प्रसन्नता को व्यक्त करने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे—वाह ! वाह ! वाह ! कितना सुन्दर नृत्य किया तुमने !

(7) उद्धरण चिह्न (Inverted Comma) ( ”… ” ) 

इसके दो रूप हैं—

(1) इकहरा उद्धरण चिन्ह (Singl inverted Comma); 

(2) दुहरा उद्धरण चिह्न (Double Comma).

( क ) किसी ग्रंथ से जब कोई वाक्य अथवा अवतरण उद्धृत किया जाता है, उस समय दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है । जब कोई विशेष पद, वाक्य खण्ड उद्धृत किये जायें उस समय इकहरा उद्धरण चिह्न लगता है जैसे — ‘दिवस का अवसान समीप था, गगन था कुछ लोहित हो चला ।। तरु शिखा पर थी अब राजती, कमलिनी, कुलवल्लभ की प्रभा । — हरिऔध ‘कामायनी’ एक महाकाव्य है ।

( ख ) लेखक या कवि का उपनाम, लेख का शीर्षक, पुस्तक का नाम, समाचारपत्र का नाम उद्धृत करते समय इकहरे उद्धरणचिह्न का प्रयोग होता है ।
जैसे — ‘निराला’ छायावादी कवि थे । ‘आज’ एक हिन्दी दैनिक पत्र है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ एक प्रसिद्ध धार्मिक रचना है ।

( ग ) महत्वपूर्ण कथन, सन्धि, कहावत इत्यादि को उद्धृत करते समय दुहरे उद्धरण चिहून का प्रयोग करना चाहिए । जैसे—’कविता हृदय की मुक्तदशा का शाब्दिक विधान है’–आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ।।

(8) कोष्ठक चिह्न (Bracket) ( ( ) ) 

वाक्य में प्रयुक्त पदविशेष को अच्छी तरह स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है ।
जैसे—श्रीकृष्ण के भाई (बलराम) शस्त्र के रूप में हल पारण करते थे । धर्मराज (युधिष्ठिर) पाण्डवों के अग्रज थे

(9) विवरण चिह्न (Sign of following) (:-)

किसी पद की व्याख्या करने या किसी के बारे में विस्तार से कुछ कहने के लिए विवरण चिडून का प्रयोग होता है।
जैसे — समास :– कई पदों का मिलकर एक हो जाना समास कहलाता है। इसके छः भेद होते हैं।

To Dosto kesi lagi aapko yeh post Viram chinh (Punctuation Mark) In Hindi – विराम चिह्न or aapko viram chinh ke bare me or kuch bhi puchna hai to hame comments kar ke jaroor btaye or is post ko apne dosto ke sath jaroor share kare.


Updated: November 5, 2019 — 6:37 am

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