Hindi Kahawat With Meaning And PDF – हिंदी कहावतें और उनके अर्थ

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Hindi Kahawat With Meaning And PDF - हिंदी कहावतें और उनके अर्थ
Hindi Kahawat With Meaning And PDF – हिंदी कहावतें और  उनके अर्थ

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Hindi Kahawat With Meaning And PDF – हिंदी कहावतें और उनके अर्थ

वस्तुतः कहावत के मूल में कोई कहानी अथवा घटना ही होती है। बाद में जब लोगों की जबान पर उस घटना अथवा कहानी से निकली बात चल पड़ती है तो वही कहावत’ बन जाती है । एक रूप में यह भी कहा जा सकता है कि कहावतों के मूल में नीतिमूलक सूत्र रहते हैं, जिनका प्रयोग गद्य और पद्य दोनों में होता है । इस प्रकार एक-एक कहावत जीवन की सधी हुई अनुभूति होती है।

Kahawat in hindi – कहावतें अर्थ सहित

(1) अधजल गगरी अलकत जाय-थोड़ी विद्या अथवा घन पाकर इतराना, घमंड करना ।
(2) अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना—जो अत्याचारी और निर्दयी होते हैं उनके आगे अपना दुखड़ा सुनाना व्यर्थ होता है ।
(3) अंघों में काना राजा–यदि बहुत-से मूर्ख हों तो उनमें से किसी एक को पंडित मानना । |
(4) अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता—अकेला आदमी कुछ नहीं कर पाता ।।
(5) अनदेखा चोर राजा बराबर–जब तक किसी का पाप छिपा रहता है तब तक वह पापी भी धर्मात्मा माना जाता है।
(6) अपनी डफली, अपना राग—जिसकी जैसे इच्छा हो वैसा करे अर्थात् संगठन का अभाव ।
(7) अशफ की लूट और कोयले पर छाप–कीमती सामान को नष्ट होने देना और तुच्छ एवं सस्ती वस्तु की रक्षा करना।
(8) आप भला तो जग भला आदमी यदि स्वयं भला हो अर्थात् सज्जन हो तो दूसरे आदमी की भी भलाई कर सकता है।
(9) आधा तीतर आया बटेर—खिचड़ी अर्थात् जितनी वस्तुएँ हैं वे सभी एक दूसरे के मेल में न हों।
(10) आगे नाथ न पीछे पगहा—बिलकुल निःसंग ।
(11) आम का आम गुठली का दाम किसी भी काम में दूना लाभ उठाना ।
(12) आप दूवे तो जग इवाजो आदमी गलत होता है वह सबको वैसा ही समझता है ।।
(13) आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास – कोई आदमी कुछ काम करने चले और करने लगे कुछ दूसरा काम ।
(14) ईश्वर की माया, कहीं पूप कहीं छाया ईश्वर की सृष्टि में कहीं सुख और कहीं दुख ।
(15) इस हाथ दे, उस हाथ ले—अपने किये कर्मों का फल शीघ्र ही मिलता है ।
(16) होनहार बिरवान के होत चीकने पात–होनहार के लक्षण शुरू से ही दिखाई देने लगते
(17) ऊँची दूकान, फीका पकवान—जिसमें सिर्फ तड़क-भड़क हो और वास्तविकता न हो ।
(18) ऊँट किस करवट बैठता—किसका कैसा लाभ होता है ।।
(19) ऊँट के मुँह में जीरा-जितनी जरूरत हो उससे बहुत कम ।
(20) उलटे चोर कोतवाल को डाँटे अपराध करनेवाला अपराध पकड़ने वाले को डाँटे ।
(21) एक पंथ दो कान—एक साथ दो इचित लाभ होना ।
(22) एक तो चोरी, दूसरे सीनाजोरी–खुद गलती कर उसे स्वीकार न करना और उलटे ही रोब गाँठना ।
(23) एक म्यान में दो तलवार–एक जगह पर दो समान अहंकारी व्यक्ति नहीं रह सकते ।
(24) एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा—बुरे आदमी को बुरे का संग मिलना ।
(25) ओस चाटे पास नहीं बुझती-अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता ।
(26) ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर–विपत्ति के समय धैर्य से काम लेना ।।
(27) कहाँ राजा भोज और कहाँ गैंगुआ तेली-छोटे और निर्घन आदमी का मिलन बड़ों से नहीं होता ।
(28) कभी नाव पर गाड़ी और कभी गाड़ी पर नाब स्थिति सर्वदा एक समान नहीं रहती
(29) कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कम्बल, भीजे पानी—बिलकुल उलटा काम ।
(30) कहीं का टि, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा इषर-उधर से वस्तुएँ लेकर कोई चीज बनाना अर्थात् कोई नवीनता नहीं ।
(31) काला अक्षर भैंस बराबर बिलकुल अनपढ़ का लक्षण ।
(32) का बरसा जब कृषी सुखाने–अवसर के बीत जाने पर काम पूरा नहीं होता ।
(33) काबुल में क्या गदहे नहीं होते—अच्छे-बुरे लोग हर स्थान पर होते हैं ।
(34) खग जाने खग ही की भाषा—जो जिसके साथ रहता है वही उसकी बात जानता है ।
(35) खरी मजूरी, चोखा काम पूरा पैसा देने से अच्छा और पूरा काम होता है।
(36) खेत खाये गदहा और मार खाये जुलहा कसूर कोई करे और सजा किसी और को मिले ।
(37) सत्तर चूहे खाके, बिल्ली चली हज को–जिन्दगी भर पाप कर अन्त में धर्मात्मा बनने का ढोंग करना ।
(38) साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे—किसी नुकसान के बिना ही काम का पूरा होना ।

(39) सो सयाने एक मत भले ही बुद्धिमान् आदमी अनेक हों, पर उनका निर्णय एक समान । होगा ।

(40) गुरु गुड़ रह्म चेला चीनी हुआ—शिष्य गुरु से आगे निकला ।

(41) गये ये रोजा मुड़ाने, गले पड़ी नमाज-सुख के लिए जाय, पर मिले दुख ।
(42) गुरु कीजै जान, पानी पीजै छान–अच्छी तरह सोच-समझकर और जाँचकर ही कोई काम करना चाहिए । | (43) गोद में लड़का, नगर में हिंदोरा–सहज ही मिलने वाली वस्तु के लिए व्यर्थ परेशान होना।
(44) घर पर फूस नहीं, नाम धनपत किसी के पास कोई गुण न हो, फिर भी वह गुणवान् कहलाने की इच्छा रखे ।
(45) घर का भेदी, लंकादाह—आपसी फूट से हानि होती है।
(46) घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की वीमती वस्तु का कोई मूल्य नहीं ऑकता ।।
(47) घी का लहू टेढ़ा भला लाभदायक वस्तु किसी भी रूप में लाभदायक ही होती है ।
(48) चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय—बड़ी एवं कीमती वस्तु को खोकर छोटी वस्तु को बचाने की चेष्टा करना । | (49) चोर की दाढ़ी में तिनका-अपराध करने वाला व्यक्ति स्वयं चिन्तित एवं डरता रहता है।
(50) चोर-चोर मौसेरे भाई—एक समान पेशेवाले व्यक्ति आसानी से आपस में मिल जाते हैं ।
(51) चौबे गये धब्बे होने, दूवे बनके आये लाभ के लिए जाय और बदले में मिल जाय हानि ।
(52) छप्पर पर फूस नहीं, इयौढ़ी पर नाच-छोटे आदमी का बड़प्पन दिखाना अर्थात् आडंबर ।
(53) छठी का दूध याद आना बुरा हाल होना ।
(54) छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभान अल्लाह-छोटे से अधिक बड़े व्यक्ति में बुराई होना ।।
(55) छोटे मुँह बड़ी बात बढ़-बढ़कर बातें करना ।
(56) जबतक साँस, तबतक आस—अन्तिम समय तक आशा करना ।
(57) जिन इँट्टा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ–अधक और कठोर परिश्रम करनेवाले को अवश्य सफलता मिलती है।
(58) जप्त दलह तस बनी बात-अपने ही सभी साथी-संगी।
(59) रोग का एर खाँसी, झगड़े का घर हाँसी–अधिक मजाक करना ठीक नहीं होता।
(60) लूट में चरखा नफा—किसी विशेष लाभ का न होना ।
(61) शौकीन बुढ़िया, चटाई का लहँगा बुरी तरह का शौक ।
(62) सावन के अन्धे को हरा ही हरा सूझता है—स्वार्थी आदमी को प्रत्येक ओर अपना स्वार्थ ही दीखता है ।।
(63) जहाँ न जाये रबि, तहाँ जाये कवि दूरदर्शी अर्थात् पैनी दृष्टिवाला ।
(64) जान है तो जहान है—प्राण सबसे अधिक मूल्यवान् होता है ।
(65) जैसा देश वैसा वेश—देश के अनुसार कार्य करना ।।
(66) जिसे पिया माने वही सुहागिन—जिसे जो रुच जाय वही उत्तम ।।
(67) जैसा राजा वैसी प्रजा बड़े व्यक्ति के आचरण का प्रभाव छोटे व्यक्ति पर पड़ता है ।
(68) जैसी करनी वैसी भरनी—जैसा किया जाता है वैसा फल मिलता है।
(69) जल में रहे, मगर से बैर–जिसके अधीन रहे उसी से बैर ।
(70) जो बोले सो किवाड़ खोले-–नेतृत्व करने वाले को अधिक श्रम करना पड़ता है।
(71) जो बोले सो घी को जाय–नेतृत्व करने वाले को अधिक श्रम करना पड़ता है ।

(72) जैसी बड़े बयार पीठ तब तैसी दीजै–समयानुसार काम करना ।
(73) जाके पाँव न फटी बिवाई सो क्या जानै पीर पराई—बिना दुख भोगे दूसरे के दुख का अनुभव नहीं हो सकता
(74) झोपड़ी में रहना और महल का सपना देखना–असंभव बातें सोचना ।
(75) डूबते को तिनका सहारा—असहाय आदमी के लिये थोड़ा-सा भी सहारा बहुत होता है।
(76) तसलवा तोर कि मो—एक वस्तु पर दो आदमी के दावे का झगड़ा ।।
(77) तन पर नहीं लत्ता, पान खाये अलबत्ता झूठा घमंड दिखलाना ।।
(78) तीन बुलाये, तेरह आये—बिना बुलाये ही बहुत लोगों का आ जाना ।
(79) तीन लोक से मथुरा न्यारी एक प्रकार का विचित्र तरीका ।
(80) तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा ढकोसला दिखाना अंथवा व्यर्थ का बखेड़ा खड़ा करना ।
(81) तू डाल-डाल, मैं पात-पात—किसी की चाल को अच्छी तरह पहचान लेना ।
(82) दालभात में मूसलचन्द–किसी के काम में बेकार ही दखल देना ।
(83) दुधार गाय की लताड़ भली—जिससे लाभ हो उसकी झिड़कियाँ भी अच्छी लगती हैं।
(84) दमड़ी की हैंजिया गयी, कुत्ते की जात पहचानी-थोड़ी-सी वस्तु में ही बेइमानी का पता लगना ।
(85) वस की लाठी एक का बोझ कई लोगों के सहयोग से कार्य अच्छी तरह से हो जाता है, जबकि एक आदमी के लिए वह कठिन हो जाता है।
(86) सब धान बाईस पसेरी—अच्छे-बुरे सबको एक समान समझना ।
(87) रस्सी जल गयी, पर ऐंठन न गयी—बुरी हालत हो जाने पर भी घमंड करना । |
(88) देशी मुर्गी विलायती बोत—बेमेल एवं बेढं काम करना ।
(89) दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम एक साथ दो काम नहीं हो पाता अर्थात् कोई लाभ नहीं होता ।
(90) पोनी का कुत्ता, न घर का, न घाट क–कहीं का न रहना, निरर्थक सिद्ध होना ।
(91) न ऊयो का लेना, न माधो को देना–कोई लटपट नहीं ।
(92) न नौ मन तेल होगा, और न राधा नाचेगी—किसी साधन के अभाव में बहाना करना ।
(93) न रहे बाँस, न बाजे बाँसुरी—किसी काम की जड़ को ही नष्ट कर देना, निर्मूल करना ।
(94) नक्कारखाने में तूती की आबन–कोई सुनवाई न होना ।।
(95) नेकी और पूछ-पूछ–बिना कहे ही भलाई करना ।
(96) नो की लकड़ी नब्बे खर्च-थोड़े-से लाभ के लिए अधिक खर्च करना ।।
(97) नौ जानते हैं, छः नहीं ढोंगी आदमी; सीधा, सरल आदमी भी ।।
(98) नौ नगद, न तेरह उधार-थोड़ा-सा नकद आये वह अच्छा है, पर अधिक उधार देना ठीक नहीं ।
(99) नाम बड़े, दर्शन थोड़े-किसी के गुण से अधिक प्रशंसा एवं प्रचार का होना ।।
(100) नाचे न जाने, अँगनवे टेढ़-काम करने का ढंग मालूम न होने पर कुछ दूसरा बहाना करना ।
(101) नीम हकीम खतरे जान—अयोग्य व्यक्ति से लाभ के बदले हानि ही मिलती है।
(102) पानी पी कर जात पूछना काम करके परिणाम के बारे में सोचना ।
(103) प्रथमे मासे मक्षिकापातःकाम के शुरू में ही विघ्न पड़ना ।
(104) बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा कष्ट सहनेवाला व्यक्ति ही दूसरे के कष्ट को समझ सकता है।
(105) बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद–मूर्ख आदमी गुण का आदर करना नहीं जानता ।
(106) बीदी महल में, गला बाजार में लाज-लिहाज छोड़ देना ।
(107) बिल्ली के भाग से छींका टूटा–संयोग से काम का हो जाना ।
(108) बैल न कुवे, कूदे तंगी मालिक के बल पर नौकर की हिम्मत बढ़ना ।
(109) बिन माँगे मोती मिले. माँगे मिले न मीछ—लालची बनने से कोई काम नहीं बनता।
(110) मन चंगा तो कठौती में गंगा यदि मन शुद्ध है तो सब कुछ ठीक ।
(111) दान के बैल के दाँत नहीं देखे जाते—मुफ्त मिले हुए सामान पर टीका-टिप्पणी करना अनुचित है।
(112) मुँह में राम, बगल में मुरी–कपटी आदमी ।
(113) मानो तो देव नहीं तो पत्थर–विश्वास करने से ही फल मिलता है।
(114) मान न मान मैं तेरा मेहमान—किसी पर जबरदस्ती बोझ डालना ।।
(115) मेढकी को जुकाम होना–योग्यता न होने पर भी योग्यता का ढोंग करना ।
(116) मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त–किसी काम के लिए जिसे गर्ज है वह निश्चिन्त रहे और दूसरा उसके लिए चिन्ता करे ।

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To dosto yeh thi Hindi Kahawat With Meaning And PDF – हिंदी कहावतें और  उनके अर्थ ki post aasah karta hu ki aapko yeh post hindi kahawat pasand aai hogi agar aapko hindi kahawat kosh se related kuch bhi puchna hoto hame comments kar ke jaroor btaye or is post ko apne dosto ke sath share karna na bhule.

2 Comments

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  1. Bara bara line kahavat ka jaise andher nagari chaupat raja take ser bhaji tak e ser khaja

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